शहर क्षेत्र में गिरेंगे चार सैकड़ा मकान, ज्वालागंज के 22.5 बीघे तालाब पर प्लाटिंग का मामला ...

👉हाईकोर्ट के आदेश के बाद 400 मक़ानो का अस्तित्व दाँव पर
👉-ज्वलागंज के 22.5 बीघे तालाब का अस्तित्व समाप्त कर बसाई गई थी आबादी
👉-एसडीएम सदर के आदेश पर समूचा भू-भाग का पुनः तालाबी नम्बर दर्ज
👉-भू-माफ़ियाओ का बड़ा खेल, एग्रीमेण्ट करा बेच डाले क़ीमती प्लाट
👉- क़ाबिज़ भवन स्वामियों की सूखी हलक, रजा, रफ़ी, मुख़्तार, आसिफ़ व इस्तियाक पर बढ़ा दबाव


✍️फ़तेहपुर। प्रायः भू-मफ़ियाओ की कुत्सित मानसिकता का गवाह रहे फ़तेहपुर शहर की एक बड़ी आबादी का अस्तित्व ख़तरे में पड़ गया है। उच्च न्यायालय के एक कड़े आदेश के बाद क़स्बा फ़तेहपुर दक्षिणी (न्यू कालोनी ज्वलागंज) में बने आलीशान लगभग 4 सैकड़ा मक़ानो को कभी भी गिराया जा सकता है। पिछले  20 वर्ष के अन्तराल में 22.5 बीघे के क़रीब बड़े तालाब का अधिकांश हिस्सा पाट कर की गई प्लाटिंग पर करोड़ों की क़ीमत के भवन खड़े है। जिस भू-भाग पर यह कालोनी आबाद है उसको पुनः तालाबी नम्बर पर दर्ज कर दिये जाने से इन भवनो का अस्तित्व समाप्त होने की संभावनायें बढ़ गई है!
   उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पूर्व ताज नगरी आगरा में एक बड़े तालाब को पाटकर पाँच सितारा होटल बनाकर खड़ा कर देने के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय में पिछले वर्ष एक जनहित याचिका दाख़िल की गई थी जिस पर फ़ैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने न सिर्फ़ उपरोक्त होटल को गिराने बल्कि सूबे के सभी ज़िला अधिकारियों को ऐसे तालाबों से तत्काल अवैध क़ब्ज़े हटवाने के सीधे कड़े आदेश जारी किये थे।
       उच्च न्यायालय के सख़्त आदेश के बाद पिछले माह 20 नवम्बर को उप ज़िलाधिकारी सदर प्रमोद कुमार झा ने क़स्बा फ़तेहपुर दक्षिणी (न्यू कालोनी ज्वलागंज) के इस भू-भाग को ख़तौनी में पुनः बतौर तालाबी नम्बर दर्ज करने का आदेश दिया जिसके बाद सरकारी दस्तावेज़ो में यह तालाब के रूप में दर्ज हो गया है। इस आदेश के बाद उक्त ज़मीन पर बने आवासों गिराने की सरकारी क़वायद भी शुरू हो गई है। देखना यह है कि प्रशासन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का कितना अनुपालन कर पाता है !
    सरकारी दस्तावेज़ो में क़स्बा फ़तेहपुर दक्षिणी जिसे अब न्यू कालोनी ज्वालागंज के नाम से जाना जाता है। 1958 से 1962 तक चली चकबंदी में हेरफेर करके लगभग 22.5 बीघा क्षेत्र में  फैले इस तालाब का आधा हिस्सा डिप्टी/मजिस्ट्रेट रामपाल व आधा उनके परिजनों के नाम भूमिधरी दर्ज कर दिया गया। मूलतः ग़ाज़ीपुर थाने के गम्भरी  गाँव के मूल निवासी रामपाल सिंह की 1999 में मौत के बाद वर्ष 2000 में उनके वारिशान पुत्र निर्भय सिंह व अभय सिंह एवं पत्नी ने अपने अपने हिस्से (दस बीघे) का मुक्तार आम (पवार आफ अटार्नी) रजा मोहम्मद के नाम कर दिया। उन्होंने तालाब का 10 बीघा क्षेत्र पटवाकर इसमें डेढ़ सौ के क़रीब प्लाटों की बिक्री की और स्वयं बैनामा किया।
     इसी तरह तालाब के आधे हिस्से का स्वामी बताकर रामपाल के अन्य परिजनों ने तालाब का 04 बीघा क्षेत्र रफ़ी अहमद को, 05 बीघा 04 (गुलशन लोधी, मुख़्तार अहमद, आसिफ़ हुसैन व इश्तियाक़ अहमद) लोगों व 01 बीघा नन्हें भूसा वाले के नाम मुक्तार आम (पवार आफ अटार्नी) कर दिया। इन लोगों ने भी तालाब का बड़ा हिस्सा पटवाकर इसमें सवा सौ के क़रीब प्लाटों की बिक्री की और स्वयं बैनामा किया। इसमें एक सरकारी महिला अध्यापक के नाम भी एक बीघे के क़रीब का बैनामा लम्बे समय से चर्चा में रहा है। मौक़े पर अभी भी लगभग ढाई बीघे का तालाब है, जिसे भी नगर पालिका के कूड़े से पाटा जा रहा है। सरकारी दस्तावेज़ 59 फ़सली में 22.5 बीघा इलाक़ा तालाब के नाम दर्ज है। जिसका हवाला गाटा संख्या 2575/2 रक़बा 1.5790, गाटा संख्या 2575/1 गाटा संख्या 1.7400 व गाटा संख्या 2575 मि. के रूप में मिलता है।
     विगत 20 नवम्बर को एसडीएम सदर प्रमोद कुमार झा के इस मद के आदेश के बाद साढे बाईस बीघे के तालाब का जिन्न फिर बोतल से बाहर आ गया है। क्योंकि मामला सैंकड़ों सजे-सँवरे भवनो और बड़ी आबादी के अस्तित्व का है, इसलिये प्रशासनिक मशीनरी की भावी गतिविधियों पर सब की नज़र टिकी हुईं है। इस संदर्भ में तहसीलदार सदर विदुषी सिंह ने बताया कि एसडीएम के आदेश पर दस्तावेज़ो में तालाब दर्ज कर दिया गया है। आगे की कार्यवाही के बारे में उनका कहना है कि नगर पालिका परिषद द्वारा सभी को नोटिस जारी करके उनसे सम्बंधित दस्तावेज़ तलब किये जायेंगे।


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