साढ़े छः साल बाद भी लावारिस पड़े है सामुदायिक मिलन केन्द्र
-पूर्व सांसद राकेश सचान के प्रस्ताव पर 1.4 करोड़ की लागत से बने थे 14 केन्द्र
-कही भरा जा रहा भूसा, कही चल रही कोचिंग, कुछ में तो हो गया अवैध क़ब्ज़ा
- फ़र्ज़ी हस्ताक्षर बना कार्यदाई संस्था ने कहा हैण्डओवर कर दिया गया, नगर पालिका ने किया इंकार
✍️फ़तेहपुर। सरकारी कार्यदाईं संस्था ग्रामीण अभियंत्रण सेवा प्रखंड (फ़तेहपुर) में माननीयो की निधि का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग का एक और मामला प्रकाश में आया है। डीएम और सीडीओ के सीधे नियंत्रण वाली इस इकाई में वैसे तो व्यापक गड़बडियो की लम्बी फ़ेहरिस्त है किन्तु ऐसी अंधेरगर्दी जिसका सन्दर्भ सुनकर अच्छे-अच्छो के होश उड़ जायेंगे! पूर्व सांसद राकेश सचान के कार्यकाल के लगभग अन्त में अलग-अलग प्रस्तावो पर 1.4 करोड़ की लागत से बनाये गये 14 सामुदायिक मिलन केन्द्रो (जातीय आधार पर) को लगभग साढे छः साल बाद भी “संरक्षक” की तलाश है!
उल्लेखनीय है कि पूर्व सपा सांसद राकेश सचान की सांसद निधि से बनवाये गये इन सामुदायिक मिलन केंद्रो के बारे में कार्यदाई संस्था आरईएस का कहना है कि 2015 में ही उसने इन्हें नगर पालिका परिषद (फ़तेहपुर) को सौंप दिया था जबकि पालिका प्रशासन का स्पष्ट कहना है कि इन मिलन केंद्रो को उसे अब तक हैण्डओवर नहीं किया गया है। पालिका का समूचा तंत्र आरईएस के दावे को सिरे से ख़ारिज करता है।
सरकारी कार्यदाई संस्था आरईएस व नगर पालिका परिषद के बीच पचड़े में फ़से इन सामुदायिक मिलन केंद्रो के बारे में बताया जाता है कि आरईएस जिस पत्र के आधार पर पालिका की तत्कालीन ईओ द्वारा इन्हें अपने हैण्डओवर करने का दावा करता है, वह पत्र नगर पालिका गया ही नहीं! जिन तिथियों में तत्कालीन ईओ के हस्ताक्षर से इन केंद्रो को हैण्डओवर करने की बात कही जा रही है, उन तिथियों में तत्कालीन ईओ मुख्यालय में थी ही नहीं और उन तिथियों में आरईएस के किसी पत्र का उल्लेख नगर पालिका परिषद के डिस्पैच रजिस्टर में भी नहीं मिलता। इन संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है कि फ़र्ज़ी हस्ताक्षर बना कर काग़ज़ी घोड़े दौड़ा लिये गये। यहा पर ग़ौरतलब है कि शासनादेश के मुताबिक़ किसी भी नवनिर्मित भवन को हैण्डओवर करने की प्रक्रिया बग़ैर सम्बंधित विभाग के तकनीकी विशेषज्ञ के पूर्ण नहीं हो सकती। इस बिन्दु पर भी आरईएस का पक्ष ख़ासा कमज़ोर हो जाता है, क्योंकि बग़ैर जेई के सीधे ईओ को हैण्डओवर का अधिकार ही नहीं है!
उपरोक्त सन्दर्भ में आरईएस के अंदरूनी सूत्र बताते है कि इस कार्यदाई संस्था के एक अवर अभियंता जिसे विभाग में क़लंदर के नाम से जाना जाता है, उसने विभाग के तत्कालीन अधिशासी अभियंता के साथ मिलकर योजनाबद्ध ढंग से उपरोक्त सामुदायिक मिलन केंद्रो के हैण्डओवर सम्बंधी एक पत्र नगर पालिका परिषद (फ़तेहपुर) के लिये अपने विभाग से डिस्पैच तो कराया किन्तु वहाँ (नगर पालिका) न भेजकर स्वयं तत्कालीन ईओ के मिलते-जुलते हस्ताक्षर बनाकर काग़ज़ में इन सभी चौदहो मिलन केंद्रो को नगर पालिका को सौंप दिया!
पालिका प्रशासन अत्यंत घटिया निर्माण सामाग्री से बने इन मिलन केंद्रो के हैण्डओवर सम्बंधी कोई पत्र उसके पास न होने की बात वर्षों से कहता रहा है किन्तु आरईएस के क़लंदरों के दबाव में रहने वाले सिस्टम ने वर्षों गुज़रने के बाद भी करोड़ों के इस मसले का निस्तारण करना उचित नहीं समझा, नतीजतन 1.4 करोड़ की लागत से बने ये सामुदायिक मिलन केंद्रो का भविष्य अभी भी अधर में लटक हुआ है। आरईएस और नगर पालिका के अधिकारी इन मिलन केंद्रो से पूरी तरह पल्ला झाड़ते है और इन केंद्रो से अपना कोई वास्ता न होने की बात कहते है, जबकि 20 जून 2017 और 28 मई 2018 को बाक़ायदे पत्र जारी करके पालिका प्रशासन ने प्रभारी अधिकारी नगर पालिका/पंचायत (एडीएम) से स्थिति स्पष्ट करते हुए उचित कार्यवाई करने व हैण्डओवर सम्बंधी पत्र की जाँच कराने की माँग की गई किन्तु ज़िला स्तरीय ज़िम्मेदारो ने भी इस मामले को गम्भीरता से नहीं लिया और समूचा मामला अभी भी जहाँ का तहाँ पचड़े में पड़ा हुआ है।
ज्ञातव्य रहे कि पूर्व सांसद राकेश सचान ने अपने कार्यकाल के अन्त में अलग-अलग जातियों के नाम पर मिलन केन्द्र बनवाने के प्रस्ताव डीआरडीए को भेजे थे, जिसके लिये ज़मीन की व्यवस्था नगर पालिका ने की थी। बताते चले कि कुछ सत्ता के दबाव और कुछ लोकसभा चुनाव की आपा-धापी में कई मिलन केन्द्र प्राईवेट जमीनो पर भी बन गये, जिनके मसले प्रशासनिक अधिकारियों के पास प्रायः आते रहते है! शहर क्षेत्र में सीओ सिटी कार्यालय के सामने बने मिलन केन्द्र की ज़मीन को लेकर प्रारम्भ से विवाद था। यह ज़मीन जिसकी है, वह अब इस केन्द्र को अपनी प्रापर्टी बता रहा है। इसी तरह चार और मिलन केंद्रो की ज़मीनो पर विवाद बरक़रार है। यहाँ पर सवाल यह भी उठता है कि 10-10 लाख की लागत से 20 बाई 40 फ़ीट पर बने इन 14 सामुदायिक मिलन केंद्रो का भविष्य क्या होगा। इनके इस हश्र के लिये आख़िर जिम्मेदार कौन है! मौक़े पर लावारिस हालत में पड़े इन सरकारी भवनो की स्थापना का न तो उद्देश्य पूरा हो रहा है और न ही जिम्मेदार इस मद में गम्भीर है। उससे बड़ी बात यह है कि कोई इस मामले पर बोलने तक को तैयार नहीं है! उधर इन मिलन केंद्रो के अग़ल-बग़ल की सरकारी ज़मीन पर भी क़ब्ज़े हो रहे है और भवनो का भी दुरुपयोग हो रहा है। इस मद में न तो प्रशासन गंभीर है और न पालिका, सत्तारुढ़ दल के मौजूदा जनप्रतिनिधि इतना कह कर अपना पल्लू झाड़ लेते हैं कि उनके कार्यकाल का मामला नहीं है। वही आवश्यक रखरखाव के अभाव में ये मिलन केंद्र अभी से जीर्ण-शीर्ण हालत में पहुँच चुके है ...! जिनका कोई पुरसाहाल नहीं है और कोई सुध लेने वाला भी नहीं हैं...! 👆