👉दो समानांतर इकाइयों के पचड़े में आर्य समाज का अस्तित्व ...
👉 - किरायेदार से आर्य समाज के प्रधान बने राजा सिंह ने ताक पर रखे नियम-क़ानून, आर्य सामाजियो ने खड़े किये सवाल
👉- दशकों से है एक ही परिवार का अवैध क़ब्ज़ा, ढाई दशक से मंदिर में न हवन हुआ न जलसा ...!
👉-प्रशासनिक ज़िम्मेदारो की बेरुख़ी भी आसान बना रही अवैध क़ब्ज़े की राह
👉-हर्षवर्धन के बाद शुरू हुई वर्चस्व की जंग, हासिये में आर्यसमाज़ी काम-काज
✍️ फ़तेहपुर। तक़रीबन पचास करोड़ की बाज़ारू क़ीमत वाली आर्य समाज से जुड़ी क़ीमती स्थानीय परिसम्पत्तियों का अस्तित्व दाँव पर है! दो समानांतर इकाइयों के पचड़े में आर्य समाजी व्यवस्था इस क़दर पड गई है कि इससे पार पाने के विकल्प सीमित हो गये है। अस्सी के दशक में किरायेदार बनकर इंट्री करने वालों ने लगभग ढाई दशक से सिस्टम की दिशा और दशा को इस क़दर प्रभावित करके रखा है कि यह इकाई अपने उद्देश्य से पूरी तरह भटक गई है। नियमो के विपरीत इस परिसर के बड़े भाग में एक ओर निजी विद्यालय चलाया जा रहा है तो दूसरी ओर प्रायः तथाकथित मिसेज इंडिया आदि का वैभव सिर चढ़कर बोलता है। दशकों से जहाँ एक ही परिवार का इसमें अवैध क़ब्ज़ा है तो वही ढाई दशक से मंदिर में न हवन हुआ है और न जलसा। प्रशासनिक ज़िम्मेदारो की बेरुख़ी भी अवैध क़ब्ज़ेदारो की राह को आसान बनाती रही है। डा० हर्षवर्धन के बाद यहाँ पर शुरू हुई वर्चस्व की जंग के चलते आर्यसमाज़ी व्यवस्था एवं काम-काज को हासिये में पहुँचा दिया है...!
उल्लेखनीय है कि स्थानीय आर्यसमाज के अंतिम सर्वमान्य प्रधान के रूप में ख्यातिलब्ध नेत्र चिकित्सक डा० हर्षवर्धन ने 1995 के क़रीब जब इससे अपने को अलग किया तो लगभग तीन वर्षों तक अलग अलग कार्यवाहक प्रधानो ने व्यवस्था सम्भाली। कुछ समय अधिवक्ता अशोक अवस्थी ने व्यवस्था देखी तो कुछ समय विनय अरोरा और नवल किशोर दुबे ने कामकाज देखा। 1997 के क़रीब अस्सी के दशक में यहाँ बतौर किरायेदार इंट्री करने वाले राजा सिंह भदौरिया ने लख़नऊ में संचालित आर्यसमाज की दो समानांतर इकाइयों में एक से स्वयं को यहाँ का प्रधान घोषित करवा लिया तो लगभग उसी समय जनपद के धाता क्षेत्र के मानिन्द हरिश्चन्द्र आर्य ने दूसरी बाड़ी से स्वयं को यहाँ (आर्य समाज) का प्रधान घोषित करवाकर राजा सिंह को खुले तौर पर चुनौती दी।
समाज को नई दिशा देने और दशा तय करने के उद्देश्य से सदियों पूर्व स्थापित आर्य समाज की स्थानीय इकाई कम से कम फ़तेहपुर में तो अपने उद्देश्य में सफल नहीं कही जा सकती। स्थानीय आर्यसमाज परिसर में अस्सी के दशक के प्रारम्भ तक राजकीय बालिका इण्टर कालेज संचालित होता था और सामाजिक कार्य होते थे। जब जीजीआईसी अपनी बिल्डिंग में चला गया तो उपरोक्त किरायेदार ने नियमो को ताक पर रखकर अपना विद्यालय खोल लिया किंतु कुछ वर्षों में ही तत्कालीन प्रधान हर्षवर्धन ने स्कूल तो बंद करा दिया किन्तु कुत्सित मानसिकता वालों के मंसूबो पर नियंत्रण नहीं प्राप्त कर सके।
आर्यसमाज की व्यवस्था के मुताबिक़ वर्ष में दो बार और कम से कम एक बार जलसा और लगभग रोज़ाना यहाँ बने मंदिर में हवन-पूजन होना चाहिये जो अब दूर की कौड़ी कहाँ जा सकता है। स्थानीय आर्य समाज की विवादित बाड़ियों में एक के प्रधान राजा सिंह भदौरिया ने तो इति ही कर दी है। नियमो के सर्वथा विपरीत इस परिसर के एक बड़े हिस्से में डीएवी किड्स केयर नाम से एक विशुद्ध निजी स्कूल चलवा रहे है। जिसकी प्रबंधक राजा सिंह की तथाकथित मिसेज इंडिया बेटी गीतांजली सिंह बताई जाती है। इसके अतिरिक्त निहित व्यवस्था के सर्वथा विपरीत राजा सिंह का पूरा परिवार इसी परिसर में रहता है। यहाँ तक कि विवाहित बेटी के परिवार का निवास भी इसी परिसर में होना बताया जाता है। गीतांजली की प्रेस ब्रीफ़िंग आदि भी प्रायः इसी परिसर से होती रही हैं। उधर आर्यसमाज की दूसरी बाड़ी से प्रधान हरिसचन्द्र आर्य को बहुत ज़्यादा सक्रिय नहीं कहा जा सकता, या यूँ कहे कि किरायेदार से प्रधान बने राजा सिंह एवं उनके परिवार के प्रभाव के मुक़ाबले उनकी हस्ती कमतर साबित होती रही है। बावजूद इसके आर्यसमाज की दुकानो में अधिकांश का किराया प्राप्त करने की क़ानूनी जंग जीतकर उन्होंने चुनौतियाँ अवश्य पेश की है। इसके अतिरिक्त एक अन्य मामले में हरिश्चन्द्र की रिट पर अदालत में राजा सिंह को मुहक़ी खानी पड़ी।
एक मामले में अदालती आदेश अगर प्रशासनिक टेबिलो में दम न तोड़ जाता तो राजा सिंह के पूर्ण रूपेण अवैध अंपायर की नीव ही हिल जाती किन्तु इन सबके बावजूद अभी भी राजा सिंह की यहाँ तूती बोलती है...! अब तो उनकी अघोषित प्रतिनिधि के रूप में बेटी गीतांजली को प्रशासन से मोर्चा संभालते देखा जाता है। यह भी कहा जा सकता है कि गीतांजली के हाईप्रोफ़ाइल स्तर के नीचे यहाँ आर्यसमाज का अस्तित्व जैसे अंतिम सांसें ले रहा है...!
उधर इस परिसर में आर्यसमाज़ी गतिविधियाँ पूरी तरह सीमित होकर रह गई है तथा इससे जुड़ी लगभग 15 बीघे ज़मीन पर और लोगों ने भी क़ब्ज़ा कर लिया है। या करने की जुगत में है। उधर आर्यसमाज़ी पद्धति के मानने वालों का इस इकाई से पूरी तरह मोहभंग हो चुका है। पिछले सप्ताह उपरोक्त सम्बंध में मुख्यमंत्री को शिकायती पत्र भेजने वाले रामधनी का कहना है कि योगी राज से उम्मीद थी कि सुनी जायेगी किन्तु इस सरकार में भी प्रभाव वालों से सम्बंधित शिकायते कोई नहीं सुनता। उन्होंने शासन से तेरह अलग अलग मामलों की जाँच करवाने और स्थानीय आर्यसमाज को अवैध क़ब्ज़ेदारो से मुक्त करवाने की माँग की है। वही जब आर्यसमाज मंदिर एवं अंदर की व्यवस्था को देखने का प्रयास किया गया तो बताया गया कि प्रधान राजा सिंह की इजाज़त के बग़ैर सम्भव नहीं जबकि राजा सिंह व उनकी प्रतिनिधि बताई जा रही गीतांजली सिंह उपलब्ध नहीं थी। उधर आर्य समाज में अतिक्रमण कर गेट लगवाए जाने समेत कई अन्य सवालों का प्रशासनिक जिम्मेदारो के पास कोई जवाब नहीं है...! 👆